MA Semester-1 Sociology paper-I - CLASSICAL SOCIOLOGICAL TRADITION - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2681
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।

अथवा
प्रस्थिति के सम्बन्ध में मैक्स बेवर के विचारों को लिखिए।
अथवा
वेबर की सामाजिक वर्ग की अवधारणा क्या है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

सामाजिक वर्ग और स्थिति
(Social Class and Status)

यद्यपि मैक्स वेबर की सामाजिक वर्ग की अवधारणा मुख्यतः आर्थिक आधारों पर आधारित है, फिर भी आप आर्थिक तथा सामाजिक कारकों में अधिकाधिक अन्तःक्रिया को स्वीकार करते हैं और इसी कारण अपने सामाजिक वर्ग के अध्ययन में इन दोनों कारकों को उचित स्थान या महत्त्व प्रदान करते हैं। मैक्स वेबर के अनुसार, सामाजिक वर्ग सामाजिक व्यवस्था (social order) का एक अंग है। आपकी इस विचारधारा को समझने के लिए हमें उनके द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक व्यवस्था' की व्याख्या को कुछ विस्तारपूर्वक समझना होगा।

मैक्स वेबर की 'सामाजिक व्यवस्था' की व्याख्या 'शक्ति' (power) की अवधारणा से प्रारम्भ होती है। सामाजिक व्यवस्था शक्ति पर आधारित होती है। 'शक्ति' से मैक्स वेबर का तात्पर्य “उस अवसर से है, जिसको कि एक व्यक्ति या कुछ व्यक्ति किसी सामूहिक क्रिया में अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए, उस क्रिया में भाग लेने वाले दूसरे व्यक्तियों द्वारा विरोध करने पर भी प्राप्त कर लेते हैं।" दूसरे शब्दों में, जिस व्यक्ति या व्यक्तियों के पास शक्ति है, वे अपने उद्देश्य की पूर्ति या लक्ष्यों की प्राप्ति उस व्यक्ति या व्यक्तियों की तुलना में, जिनके पास शक्ति नहीं है, अधिक सरलता से कर लेते हैं। परन्तु मैक्स वेबर के अनुसार, आर्थिक आधारों पर प्राप्त शक्ति और साधारण शक्ति में अन्तर है। आर्थिक शक्ति न केवल आर्थिक क्षेत्र में ही हमें प्रतिष्ठित करती है, वरन् सामाजिक प्रतिष्ठा भी प्रदान करती है। मनुष्य केवल इसलिए ही शक्ति प्राप्त करना नहीं चाहता है कि वह धनी बन जाए; वह शक्ति प्राप्त करना इसलिए भी चाहता है कि उससे उसका समाज में सम्मान होगा। परन्तु यह भी सच है कि केवल धन या शक्ति ही सदैव सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं प्रदान कर पाती है। केवल धन के बल पर या शक्ति के आधार पर ही कोई व्यक्ति समाज में सम्मान नहीं पा सकता है; उसके लिए अन्य अनेक गुणों की आवश्यकता होती है। किन्तु सामाजिक प्रतिष्ठा राजनीतिक या आर्थिक शक्ति का आधार हो सकती है।

यह सामाजिक प्रतिष्ठा, चाहे वह किसी कारण से क्यों न हो, सामाजिक व्यवस्था को निश्चित करने में महत्त्वपूर्ण है। मैक्स वेबर के शब्दों में, “जिस ढंग से सामाजिक प्रतिष्ठा किसी समुदाय के विशिष्ट समूहों में बँटी होती है, उसी को हम सामाजिक व्यवस्था कह सकते हैं।"

लेकिन मैक्स वेबर सामाजिक, आर्थिक तथा वैधानिक 'व्यवस्थाओं में अन्तर मानते हैं। सामाजिक व्यवस्था तथा आर्थिक व्यवस्था दोनों ही प्रायः समान रूप से वैधानिक व्यवस्था से सम्बन्धित होती हैं। परन्तु सामाजिक व्यवस्था तथा आर्थिक व्यवस्था एक नहीं है। आर्थिक व्यवस्था केवल मात्र वह तरीका है जिसके द्वारा आर्थिक वस्तुओं और सेवाओं का वितरण एवं उपभोग किया जाता है। इसमें सन्देह नहीं कि सामाजिक व्यवस्था बहुत हद तक आर्थिक व्यवस्था द्वारा प्रभावित होती है और स्वयं भी आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करती है, लेकिन ये दोनों ही एक हैं, यह सोचना गलत होगा। सामाजिक वर्ग इसी व्यवस्था के अन्तर्गत कार्य करता है।

जैसाकि पहले ही कहा जा चुका है कि वेबर की सामाजिक वर्ग की धारणा मुख्यतः आर्थिक आधारों पर आधारित है, क्योंकि सामाजिक वर्ग से मैक्स वेबर का अभिप्राय उस समूह से है जिसे कि आर्थिक कारणों से निर्धारित समान सामाजिक अवसर या जीवन सम्बन्धी सुविधाएँ प्राप्त हैं। मैक्स वेबर के अनुसार, “हम एक समूह को तब वर्ग कह सकते हैं जबकि उस समूह के लोगों को जीवन के कुछ विशिष्ट अवसर समान रूप से प्राप्त हों; यहाँ तक कि यह समूह वस्तुओं पर अधिकार या आमदनी की सुविधाओं से सम्बन्धित आर्थिक हितों द्वारा पूर्णतया निर्धारित तथा वस्तुओं या श्रमिक-बाजारों की अवस्थाओं के अनुरूप हो।" दूसरे शब्दों में, मैक्स वेबर के अनुसार वर्ग की तीन विशेषताएँ हैं -

(1) एक वर्ग के प्रायः सभी सदस्यों को बहुत कुछ एक-सी आर्थिक सुविधाएँ या अवसर प्राप्त होते हैं;
(2) वर्ग पूर्णतया आर्थिक हितों पर आधारित होता है और इसके सदस्यों की वस्तुओं पर अधिकार तथा आमदनी के सम्बन्ध में कुछ निश्चित अवसर प्राप्त होते हैं;(3) ये अवसर यां सुविधाएँ वस्तुओं तथा श्रमिकों के     बाजार भाव के अनुसार बदलती रहती हैं।

वस्तुओं पर अधिकार और आमदनी की सुविधाएँ - (या संक्षेप में वह तरीका जिसके अनुसार भौतिक सम्पत्ति का वितरण विभिन्न समूहों में हुआ है) विभिन्न वर्गों के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसी के अनुसार उस समूह के सदस्यों को जीवन के कुछ विशिष्ट अवसर प्राप्त हो पाते हैं। जिसके पास अधिक धन है, वह अधिक वस्तुओं और सेवाओं को प्राप्त कर सकता है; साथ ही, वह उत्पादन के साधनों को भी नियन्त्रित कर सकता है। इसके विपरीत; जिनके पास सम्पत्ति या धन नहीं है, वे केवल अपनी सेवाओं या श्रम को ही बेच सकते हैं; यही उनके जीवित रहने का एकमात्र साधन है। इस प्रकार 'सम्पत्ति का होना' और 'सम्पत्ति का न होना' समस्त प्रकार के वर्गों का आधार है। इस दृष्टि से प्रत्येक समाज को मोटे तौर पर दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- प्रथम, सम्पत्ति पर अधिकार रखने वाला वर्ग, और द्वितीय, सम्पत्ति पर अधिकार न रखने वाला वर्ग।

एक वर्ग के अधिकार में सम्पत्ति का होना या न होना एक विशिष्ट परिस्थिति को उत्पन्न करता है जिसमें कि वह वर्ग निवास करता है। इसे मैक्स वेबर ने 'वर्ग परिस्थिति' (class situation) कहा है। उदाहरणार्थ, वह वर्ग जिसके सदस्यों के पास सम्पत्ति है उसे अधिक धन कमाने, अधिक वस्तुओं को खरीदने, एक उच्च जीवन स्तर को बनाए रखने आदि के अवसर प्राप्त होंगे, ये अवसर सम्मिलित रूप से एक विशिष्ट परिस्थिति को उत्पन्न करेंगे, जिसमें कि उस वर्ग को निवास करना होगा। यही वर्ग- परिस्थिति है। एक वर्ग बहुत कुछ या प्रायः एक-सी वर्ग-परिस्थिति में निवास करता है। मैक्स वेबर के अनुसार, जैसाकि ऊपर कहा जा चुका है, प्रत्येक समाज को मोटे तौर पर दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-एक तो वह वर्ग जो सम्पत्ति का अधिकारी है, और दूसरा सम्पत्तिविहीन वर्ग इन मुख्य वर्गों का आगे और विभाजन

(1) सम्पत्ति के प्रकार
(2) सेवाओं के प्रकार के आधार पर किया जा सकता है।

दूसरे शब्दों में, एक समूह का किस प्रकार की सम्पत्ति पर अधिकार है या वह श्रम बाजार में किस प्रकार की सेवाओं को बेचता है, इन आधारों पर भी वर्गों का विभाजन किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, एक वर्ग का मिलों पर अधिकार है; सम्पत्ति के इस प्रकार के आधार पर इस वर्ग को हम मिल मालिक वर्ग कहते हैं। इसी प्रकार एक वर्ग, जोकि दफ्तर में लिखने-पढ़ने से सम्बन्धित सेवाओं को करता है, क्लर्क-वर्ग कहा जाता है। इसी प्रकार अनेक उपवर्गों का उल्लेख सम्पत्ति के प्रकार तथा सेवाओं के प्रकार के आधार पर किया जा सकता है। इसी कारण मैक्स वेबर के मतानुसार, जिनके पास सम्पत्ति नहीं है, लेकिन जो अपनी सेवाएँ देते हैं, वे आपस में ही अनेक उपवर्गों में न केवल उनके द्वारा लाया जाता है उसके अनुसार भी उनमें अनेक प्रकार के भेद होते हैं। उदाहरण के लिए, क्लकों को ही ले लीजिए। ये लोग एक विशेष प्रकार की सेवा करते हैं, इस कारण उन्हें एक वर्ग, जिसे कि क्लर्क-वर्ग कहते हैं, के अन्तर्गत माना जाता हैं; परन्तु इन्हीं क्लर्कों की सेवाओं को विभिन्न प्रकार से उपभोग में लाया जाता है, और उसी के अनुसार यह वर्ग अनेक उपवर्गों में बँटा हुआ है, जैसे एकाउण्ट्स क्लर्क, कॉमर्शियल क्लर्क, लेजर क्लर्क, चुंगी क्लर्क आदि।

इस सम्बन्ध में मैक्स वेबर का कथन है कि वर्ग की अवधारणा को यथार्थ रूप से समझने के लिए यह भी आवश्यक है कि हम बाजार की अवस्था का उचित ज्ञान कर लें, क्योंकि यह बाजार ही है जोकि व्यक्तियों के लिए सामान्य अवस्था को उत्पन्न करता है। इस प्रकार पशुपालन युग के बाजार में . सबके लिए सामान्य अवस्था इस कारण थी क्योंकि उस समय सबके लिए पशु ही आर्थिक जीवन के केन्द्र थे, कृषि युग के बाजार में यह महत्त्व पशु से हटकर भूमि पर चला गया और आज हमारे इस युग में यह महत्त्व निजी सम्पत्ति पर आ गया है। बाजार में ही प्रत्येक व्यक्ति या वर्ग की सेवा या सम्पत्ति का मूल्यांकन होता है, और उसी के अनुसार वर्ग का निर्धारण। परन्तु जिनके पास न कोई अपनी सम्पत्ति है और न ही जिन्हें अपने लिए किसी प्रकार की वस्तु या सेवाओं का उपभोग करने का अवसर प्राप्त है, जैसे गुलाम लोग, उन्हें एक वर्ग नहीं मानना चाहिए। मैक्स वेबर उन्हें 'स्थिति समूह' (status group) कहते हैं।

यद्यपि किसी विशेष वर्ग के सदस्य एक-सी प्रक्रिया प्रदर्शित कर सकते हैं, तथापि यह कहना गलत होगा कि वे किसी वर्ग हित के द्वारा निर्देशित होते हैं। वेबर का कथन है कि वर्ग- हित की अवधारणा अत्यधिक अस्पष्ट है। 'वर्ग हित' का तात्पर्य तो केवल इतना ही है कि एक वर्ग-परिस्थिति में उस वर्ग के औसत सदस्यों द्वारा अपने हितों की पूर्ति के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों की एक निश्चित दिशा होती है। 'वर्ग हित' का और कोई अर्थ लगाना इसे एक प्रयोगसिद्ध अवधारणा के रूप में और भी अधिक अस्पष्ट बना देना है। वर्ग हित की अवधारणा दो कारणों से अस्पष्ट है- प्रथम तो इसलिए कि प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने हितों की पूर्ति अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार एक विशेष प्रकार से करने की प्रवृत्ति रखता है। दूसरे इसलिए कि हितों की दिशा उस व्यक्ति द्वारा उसके उस समूह या समिति से की जाने वाली आशाओं के अनुसार परिवर्तित होती रहती है जिस वर्ग, समूह या समिति का वह सदस्य है। यह हो सकता है कि एक औद्योगिक श्रमिक अपने श्रमिक संघ से अधिक आशा न करे और इस कारण वह अपने हितों की पूर्ति स्वयं अपने तरीके से करने का प्रयत्न करे। ऐसी दशा में वर्ग- हित का प्रश्न शायद ही उठता हो। अतः स्पष्ट है कि वर्ग -हित अपने शुद्ध रूप में शायद ही मिल सके और यदि मिलेगा भी तो केवल अस्पष्ट रूप में।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
  5. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
  6. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  11. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
  12. प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
  14. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  15. प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
  16. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
  17. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
  19. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
  20. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
  21. प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
  22. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
  29. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
  30. प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
  31. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  34. प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
  35. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
  36. प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
  37. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  38. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
  39. प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
  40. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
  41. प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
  42. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
  43. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
  44. प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
  45. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
  46. प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
  47. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
  48. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
  49. प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
  50. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  52. प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
  54. प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
  55. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  58. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  60. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
  61. प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
  62. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  64. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  65. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
  66. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  67. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  68. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  69. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
  70. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
  72. प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  73. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
  75. प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
  76. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
  77. प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
  78. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  79. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  81. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  82. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  83. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  84. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  85. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  86. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  87. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  88. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  92. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  93. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  95. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  96. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  98. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  99. प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
  100. प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
  101. प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
  102. प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
  103. प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  104. प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
  105. प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
  106. प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
  108. प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
  109. प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  111. प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
  113. प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
  116. प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
  117. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
  119. प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
  120. प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
  121. प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
  123. प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
  124. प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
  126. प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
  128. प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
  129. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
  130. प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
  131. प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
  133. प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
  134. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  136. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  137. प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
  138. प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  141. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  142. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  143. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  144. प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
  145. प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  146. प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
  147. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
  148. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
  149. प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
  151. प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
  152. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
  153. प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  154. प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
  155. प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

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